मात – स्नेह – वंचन से आहत ,
मात – स्नेह की अविरल चाहत ,
पाले.. मन में नन्हां बालक ,
तड़प रहा जीवन में नाहक !
बिन माँ , बालक की जो दशा है ,
आखेटक की जाल में जैसे फंसा है ,
दिन – दिन रोता याद न जाती ,
मात – मिलन का एक नशा है !
देख विधाता ! माँ की महिमा ,
तुझसे ऊपर माँ की गरिमा ,
स्नेहातुर बालक पर तू दया कर ,
पुनः न माँ बालक को जुदा कर !
पुनः न माँ बालक को जुदा कर !
माँ के दुःख भी आसीम निरंतर ,
माँ न करे संतानों में अंतर ,
पर्याय बन चुके जैसे माँ – दुःख ,
स्वप्न में भी ना मिलता है सुख !
आओ उस बालक से सीखें ,
बिन माँ हम सब उसी सरीखे ,
माँ का मान हो सबसे पहले ,
ईश्वर ! माँ के सब दुःख हर ले !
प्रेम से मीठी – मीठी बातें ,
बढ़ी उम्र की हैं सौगातें ,
इतना ही बस हमको करना ,
पड़े न माँ से हमें बिछड़ना !!
14 thoughts to “माँ बिन बालक …”
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
बहुत उम्दा!!
सुन्दर भावों की सुन्दर रचना.
बहुत सुंदर रचना …….हर पंक्ति ह्रदय छूने वाली है ……
Sundar…
…………
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
कित्ती खूबसूरत है यह रचना..बधाई.
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पाखी की दुनिया : आकाशवाणी पर भी गूंजेगी पाखी की मासूम बातें
बहुत सुंदर कविता …. माँ अच्छा कोई नहीं …
बिलकुल सही व सार्थक ,समर्पित ,व विचारणीय .मार्मिक पोस्ट है |………….माँ से बढकर इस दुनियां में कोई नही है |
भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||
http://charchamanch.blogspot.com/
कितने सुन्दर भाव अभिव्यक्त हुए हैं… वाह!
सादर…
ब्रह्म वाक्यों की गहन अभिव्यक्ति और शब्दों के साथ सार्थक न्याय!!!
आभार!!!
बहुत सुन्दर भावों से सजी अच्छी रचना
बेहद मार्मिक एवं संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.